एक पुराना पुल था, टूटा

एक पुराना पुल था, टूटा चलो मगर सन्नाटा टूटा   जिसने सब अम्बर चमकाया अक्सर वही सितारा टूटा   कितने चेहरे हुए उजागर जब भी कोई शीशा टूटा   सुबह ग़ज़ब रफ़्तार थी लेकिन शाम को लौटा हारा टूटा   रँग-बिरँगे मोती बिखरे साँसों का जब धागा टूटा